भारतरत्न डाॕ.बाबासाहेब आंबेडकर सुविचार

1)इतिहास बताता है‍ कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्‍त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्‍त्र की होती है। निहित स्‍वार्थों को तब तक स्‍वेच्‍छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्‍त बल ना लगाया गया हो।

2) सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है, वहां अपनी पहचान नहीं खोता।

3) इंसान का जीवन स्‍वतंत्र है। इंसान सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्‍वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।

4) मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्‍वंतत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।

5)जब तक आप सामाजिक स्‍वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्‍वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी हैं।

6)समानता एक कल्‍पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्‍वीकार करना होगा।

7)यदि हम एक संयुक्‍त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शाश्‍त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।

8)एक सफल क्रांति के‍ लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्‍त नहीं है। जिसकी आवश्‍यकता है वो है न्‍याय एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्‍था।

9) कानून और व्‍यवस्‍‍था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।

10)हर व्‍यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि एक देश दूसरे देश पर शाशन नहीं कर सकता को दोहराता है उसे ये भी स्‍वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शाशन नहीं कर सकता।

11)राजनीतिक अत्‍याचार सामाजिक अत्‍याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजतीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं।

12) आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्‍तावना में इंगित हैं वो स्‍वतंत्रता, समानता, और भाई-चारे को स्‍थापित करते हैं, और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते है।

13)मनुष्‍य नश्‍वर है। उसी तरह विचार भी नश्‍वर हैं। एक विचार को प्रचार प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की नही तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं।

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